About Book
अगर आप भारत के अब तक के सबसे महान और बेहतरीन ट्रैक एथलीट के
बारे में जानना चाहते हैं या आप इंस्पायर होना चाहते हैं, तो यहां से अपनी शुरुवात
कीजिए. उस शख्स के बारे में जानिए जिन्होंने अपने फील्ड में बेस्ट बनने के लिए अपना
सब कुछ दांव पर लगा दिया था. वे भारतीय ट्रैक एथलेटिक्स को एक नएथे लेवल पर ले गए थे.
इस समरी से कौन सीखेगा?
“स्पोर्ट्स पर्सन
“स्टूडेंट्स
«जो लोग बायोग्राफी पढ़ना पसंद करते हैं
समरी के बारे में
यह समरी मिल्खा सिंह जी की ज़िंदगी के बारे में हैं. आज़ादी
से पहले के दौर में उनके जन्म से लेकर, विदेश में उनकी कामयाबी तक, यह समरी आपको उनके
जीवन के दिलचस्प सफर पर ले जाएगी. भारत के बेहतरीन एथलीट के बारे में जानने के लिए
इस समरी
को ज़रूर पढ़ें.
Unit 1
इंट्रोडक्शन(Introduction)
फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के
नाम को कौन नहीं जानता? एक दशक से ज़्यादा वक्त तक ट्रैक एथलेटिक्स फील्ड को डोमिनेट
करने वाले शख्स थे मिल्खा सिंह.यह वह शख्स थे जिन्होंने कुछ ऐसे वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए
जो दशकों तक कायम रहे.
मिल्खा सिंह को अपनी पूरी
ज़िंदगी ही भागना पड़ा.ज़िंदगी के लिए भागने से लेकर वर्ल्ड फेमस ट्रैक स्टार बनने
तक- उनका सफर काफी लम्बा रहा.
अगर आप मिल्खा सिंह जी की
शानदार ज़िंदगी की कहानी जानना चाहते हैं तो हमारे साथ बनें रहिए और इस समरी को अंत
तक सुनिए!
शुरुवाती ज़िंदगी
मिल्खा सिंह, जो फ्लाइंग सिख
नाम से बेहतर जाने जाते थे, का जन्म 20 नवंबर 1929 में हुआ था. वो पंजाब के मुज़फ्फरगढ़
सिटी से दस किलोमीटर दूर,एक छोटे से गाँव गोविंदपुरा में ब्रिटिश इंडिया के दौर में
जन्मे थे. ये जगह अब फैसलाबाद, पाकिस्तान में पड़ता मिल्खा सिंह के जन्म की तारीख को
लेकर कई रिकॉर्ड
हैं. पाकिस्तान में, ये रिकॉर्ड
20 नवंबर 1929 के तौर पर दिखता हैं. कुछ दूसरे रिकॉर्ड इसे 17 अक्टूबर 1935 और 20 नवंबर
1932 बताते हैं. उनके पासपोर्ट में उनका बर्थ डेट -20 नवंबर 1932 लिखा था. लेकिन उनके
गुज़रने के बाद, 20 नवंबर 1929 डेट का इस्तेमाल किया गया हैं.
मिल्खा सिंह का
परिवार राठौर राजपूत मूल का था और वे सिख धर्म का पालन करने लगे थे. उनकी माँमा का
नाम चावली कौर और पिताजी का नाम संपूर्ण सिंह था. उनके प्रोफेशन कया थे, इसकी जानकारी
नहीं हैं.मिल्खा सिंह के माता पिता के 15 बच्चे थे, लेकिन उनमें से 8 की मौत देश के
पार्टीशन से पहले ही हो गई थी.उन्होंने गांव के स्कूल में 5th क्लास तक की पढ़ाई की थी.
जब वो छोटे थे, मिल्खा सिंह
को स्प्रिंटिंग यानी बड़ीथी तेज़ी से दौड़ना, में थोड़ा एक्सपीरियंस मिला था क्योंकि
उन्हें अपने घर से स्कूल तक 10 किलोमीटर दूर तक दौड़ना पड़ता था, हालांकि उन दिनों
उन्हें इसका
एहसास नहीं था.
पार्टीशन के दौरान हुए दंगों
में उन्होंने अपने माता पिता और तीन भाई-बहनों को खो दिया था. अफ़सोस,कि मिल्खा सिंह
इस दर्दनाक हादसे के गवाह बने. इस भयंकर हादसे से कुछ दिन पहले, मिल्खा सिंह को
अपने बड़े भाई माखन सिंह से
मदद मांगने के लिए मुल्तान भेजा गया था. उस वक्त उनके भाई आर्मी में थे.मुल्तान के
लिए ट्रेन के सफर में, मिल्खा सिंह लेडीस कम्पार्टमेंट में, एक सीट के नीचे छिप गए.
हत्यारे भीड़ से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया था. जब तक मिल्खा सिंह और उनके भाई
माखन सिंह गांव वापस आए, तब तक दंगाइयों ने उनके गांव को जला दिया था.वे अपने माता
पिता और भाई-बहनों की लाशों तक को पहचान नहीं पाए थे.
Unit 2
पार्टीशन के बाद की ज़िंदगी
1947 की दुखद घटना के कुछ दिनों बाद, जिसमें उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया था, मिल्खा सिंह अपने भाई और उनकी पत्नी जीत कौर के साथ भारत आने वाली एक आर्मी ट्रक में सवार हो गए. इस तरह,15 साल की उम्र में रिफ्यूजी के तौर पर उन्होंने भारत में अपनी ज़िंदगी शुरू की.
उन्हें भारत के पंजाब में फिरोजपुर - हुसैनीवाला बॉर्डर के पास छोड़ दिया गया था. आज़ाद भारत में आने के बाद, मिल्खा सिंह पैसे कमाने के लिए अक्सर जूते पॉलिश किया करते थे. पैसे और मौके की कमी ने उन्हें और उनके भाई को दिल्ली, जाने के लिए मजबूर कर दिया. वहां वे कुछ वक्त के लिए अपनी बहन और बहन के ससुराल वालों के साथ रहे. उनकी बहन के ससुराल वालों ने उनके खाने-पीने के खर्चे की वजह से नाराज़गी जताई और उनके साथ बुरा बर्ताव किया. इन दिनों वे रोड के किनारे एक छोटे से रेस्टोरेंट में काम कर अपना गुज़ारा करते थे. एक बार उन्हें बिना टिकट ट्रेन का सफर करने के लिए तिहाड़ जेल जाना पड़ा था. उन्हें रिहा करवाने के लिए उनकी बहन ईश्वर कौर ने अपने कुछ गहने बेच दिए. इसके बाद, वह पुराना किला में एक रिफ्यूजी कैंप में और फिर बाद में दिल्ली के ही शाहदरा में एक रीसेटलमेंट कॉलोनी में रहे.
मिल्खा सिंह के भाई ने उनका एक लोकल स्कूल में '7th class में एडमिशन करवाया, लेकिन वे बुरी संगत में पड़ गए थे जिसकी वजह से वो अपनी पढ़ाई
जारी नहीं रख पाए. इन अनुभवों की वजह से मिल्खा सिंह अपनी ज़िंदगी से निराश हो गए थे. नतीजा ये हुआ कि उन्होंने डकैती कर अपनी ज़िंदगी जीने का फैसला किया. लेकिन उनके बड़े भाई माखन सिंह ने मिल्खा
सिंह को इंडियन आर्मी में भर्ती होने के लिए राजी कर
लिया. आर्मी में 1949 और 1950 में रिजेक्ट होने के बाद, उन्होंने एक मैकेनिक का काम करना शुरू किया. बाद में, उन्हें एक रबर फैक्ट्री में नौकरी मिल गई, जहाँ
उन्हें हर महीने 15 रूपए मिलते थे. लेकिन लू लगने के कारण वह अपना काम जारी नहीं रख सके और दो महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे.
नवंबर 1952 में, अपनी तीसरी कोशिश में वह आखिर अपने भाई की मदद से आर्मी में भर्ती हो ही गए. मिल्खा सिंह को श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर में पहली पोस्टिंग मिली थी. श्रीनगर से, Electrical
Mechanical Engg. यूनिट तेलंगाना के एक शहर सिकंदराबाद में ट्रांसफर कर दिया गया. उस दौरान, सिकंदराबाद में रहते हुए, उन्हें ट्रैक-एंड-फील्ड एथलेटिक्स में पहली बार कदम रखने का मौका मिला.पहली रेस में भाग लेने का इनाम था हर दिन एक ग्लास दूध. ये एक ऐसे जवान शख्स के लिए बड़ी बात थी जिन्हें कभी पूरा और सही पोषण नहीं मिला था.
जनवरी 1953 में, आर्मी में नए लोगों को भर्ती करने के लिए होने वाली क्रॉस कंट्री रेस में वह 6th पोजीशन पर आए. उसके बाद, उन्हें एथलेटिक्स में स्पेशल ट्रेनिंगजहा करने के लिए चुना गया. मिल्खा सिंह ने ब्रिगेड मीट में अपनी पहली 400 मीटर रेस 65 सेकंड में पूरी की और 4 पोजीशन पर
रहे. उन दिनों वह नहीं जानते थे कि 400 मीटर की रेस क्या होती है. पहले एथलीट रह चुके
श्री गुरदेव सिंह ने उन्हें बताया कि 400 मीटर की लंबाई कितनी होती है. इसके बाद उन्होंने
खुद ही 400 मीटर रेस की प्रैक्टिस करना शुरू किया. उन्होंने इसके लिए इस हद तक जी-जान
लगा दी कि कभी-कभी उनके नाक से खून निकल आता था. आर्मी ने उनके टैलेंट को पहचाना और
उन्हें नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर अच्छा परफॉरमेंस करने के लिए ज़रूरी ट्रेनिंग की
फैसिलिटी मुहैया करवाई.
मिल्खा सिंह ने एथलेटिक्स में लाने के लिए हमेशा आर्मी की बड़ाई की. वे कहते थे,
"मैं एक छोटे दूरदराज़ के गांव से आया हूं, मुझे नहीं पता था कि रेस क्या होता
है,या ओलंपिक क्या होती हैं."
Unit 3
इंटरनेशनल करियर
मिल्खा सिंह
ने 1956 से 1964 तक तीन ओलंपिक खेलों में भारत की ओर से भाग लिया. उनके कुछ कोचहॉवर्ड और गुरुओं में थे- गुरदेव सिंह, चार्ल्स जेनकिंस और डॉ. आर्थर
डब्ल्यू हॉवर्ड,1956 के मेलबर्न ओलंपिक में, उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर कॉम्पिटिशन
में भाग लिया था. लेकिन एक्सपीरियंस की कमी के कारण, वे शुरू के राउंड में ही निकल
गए थे. इसी दौरान, उन्हें 400 मीटर कॉम्पिटिशन के विनर, चार्ल्स जेनकिंस से मिलने का
मौका मिला. इस मुलाकात ने मिल्खा सिंह को इंस्पायर किया और उन्होंने ट्रेनिंग करने
के कई तरीकों की
जानकारी हासिल
की.
1956 के ओलंपिक में हार से उन्हें
गहरा धक्का लगा था. उन्होंने बाद में अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा, "अपने गोल
को हासिल करने के लिए और अपने आप को फिट और हेल्दी रखने के लिए मैंने अपने आराम और
खुशियों का त्याग कर दिया, और अपनी ज़िंदगी को उस ग्राउंड के नाम कर दिया जहां मैं
प्रैक्टिस करता था और दौड़ता था. इस तरह से, दौड़ना मेरा भगवान, मेरा धर्म और मेरा
प्यार बन गया था."
ओडिशा के कटक
में, 1958 के नेशनल
गेम्स में, मिल्खा सिंह ने 200
मीटर और 400 मीटर रेस में नए रिकॉर्ड बनाए. उसी साल हुए एशियन गेम्स में, उन्होंने
उन्हीं कॉम्पिटिशन में गोल्ड मैडल जीते. 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में,
उन्होंने 400 मीटर रेस में गोल्ड मैडल जीता था. उन्होंने 46.6 सेकंड में इस इवेंट को
पूरा किया. यह कॉमनवेल्थ गेम्स की हिस्ट्री में आज़ाद भारत का पहला एथलेटिक्स गोल्ड
था. वह इस जीत का श्रेय अपने अमेरिकी कोच स्वर्गीय डॉ. आर्थर डब्ल्यू हॉवर्ड को देते
थे. मिल्खा सिंह उन खेलों में इंडिविजुअल एथलेटिक्स मैडल जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष
थे. यह रिकॉर्ड 2014 में विकास गौड़ा ने तोड़ा जब उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था.
मार्च 960 में, पाकिस्तान ने लाहौर में एक चैंपियनशिप के लिए भारतीय एथलेटिक्स
टीम को इन्वाइट किया था. मिल्खा सिंह बटवारे के दौरान हुए अनुभवों की वजह से वहां जाने
के खिलाफ थे. तब के प्राइम मिनिस्टर जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा सिंह को भारत का नाम
ऊँचा करने के लिए, इस चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए राजी किया. बटवारे की दर्दनाक
यादों के बावजूद, वे पाकिस्तान में अब्दुल खालिक के खिलाफ दौड़े. इस रेस के बाद, जनरल
अयूब खान, पाकिस्तान के प्रेसिडेंट ने एक कमेंट किया था जिसके बाद मिल्खा सिंह को उनका
निकनेम मिला - “द फ्लाइंग सिख,”कुछ सोर्सेस का कहना हैं कि मिल्खा सिंह ने 1960 में
रोम ओलंपिक से पहले फ्रांस में 45.8 सेकंड का वर्ल्ड
रिकॉर्ड बनाया था, लेकिन ऑफिसियल रिकॉर्ड में लो जोन्स को रिकॉर्ड होल्डर माना
गया था. लो जोन्स ने1956 में लॉस एंजिल्स में 45.2 सेकंड की रेस लगाई थी. रोम ओलंपिक
में, मिल्खा ने 400 मीटर फाइनल में 440 पोजीशन हासिल की. 250 मीटर तक पहुँचने पर, सिंह
ने अपनी स्पीड धीमी कर दी थी, जिससे दूसरों को उनसे आगे निकलने का मौका मिल गया था.
सिंह का कहना था कि इन गलतियों की वजह से उन्हें गोल्ड मैडल से हाथ धोना पड़ा, ये हादसा
उनके माता-पिता
की मौत के अलावा उनकी कुछ सबसे बुरी यादों में से एक था. रेस में ओटिस डेविस, कार्ल
कॉफ़मैन और मैल्कम स्पेंस उनसे आगे निकल गए और पहले तीन पोजीशन हासिल कर लिए. रेस एक
फोटो-फिनिश अंत के साथ खत्म हुई, और मिल्खा सिंह ने 45.75 सेकेंड में इसे खत्म किया
जिससे वे सिर्फ 0.] सेकेंड से ब्रॉन्ज़ मैडल पाने से रह गए थे. यह इंडियन नेशनल रिकॉर्ड
बन गया और लगभग 40 सालों तक नहीं टूटा. यह रिकॉर्ड 1998 में टूटा, जब परमजीत सिंह ने
इसे 45.70 सेकेंड में बीट कर दिया था.
1960 के रोम ओलंपिक के दौरान, अपने लंबे बालों और दाढ़ी की वजह से मिल्खा रोमन
लोगों के बीच पॉपुलर हो गए थे. रोम के लोगों को उनके सिर पर पगड़ी देखकर लगा कि वो
कोई संत हैं. वे हैरान रह गए थे कि एक संत इतना तेज कैसे दौड़ सका. 1962 में, इंडोनेशिया
के जकार्ता के एशियन गेम्स में,मिल्खा सिंह ने 400 मीटर और 4>(400 मीटर रिले रेस
में गोल्ड मेडल जीते. 964 में, टोक्यो ओलंपिक में, उन्होंने 400 मीटर, 4>(400 मीटर
और 42000 मीटर रिले रेस में एंट्री ली थी लेकिन मिल्खा ने 400 मीटर और 4>(00 मीटर
रिले में पार्टिसिपेट नहींकिया, 4६400 मीटर रिले में, मिल्खा सिंह, माखन सिंह, अमृत
पाल और अजमेर सिंह की भारतीय टीम शुरू के प्रिलिमिनरी हीट स्टेज में लास्ट आने की वजह
से रेस से बाहर हो गए थे.
यह अफवाह है कि मिल्खा सिंह ने 80 में से 77 रेस
जीते हैं, जो कि गलत हैं. उन्होंने कितने रेस में भाग लिया है और कितने में जीते,
इसका कोई सबूत नहीं हैं. कलकत्ता में खेले गए, 964 के नेशनल गेम्स में,सिंह 400 मीटर
की दौड़ में माखन सिंह से हार गए
थे. वह १960 के रोम ओलंपिक या 956 के मेलबर्न ओलंपिक में प्रिलिमिनरी रेस में किसी
में भी पहली पोजीशन पर नहीं रहे थे.
अपने शानदार परफॉरमेंस की वजह से, मिल्खा सिंह
कई दशकों तक सबसे महान भारतीय ओलंपियन बने रहे. उनके स्प्रिंट और स्पीड, उनके रिकॉर्ड
और अनगिनत मेडल से अमर हो गए हैं.
Coming soon….. ….
. ..
COMPLETE
फाइनली अगर आप इस समरी के
एन्ड तक पहुंच
गए है , पुरा करने के लिए
बहुत बहुत धन्यबाद।
अपने परिवार और
दोस्तों के साथ ज्ञान साझा करें।
3 Comments
It very good information about milkha shigh, I wait for remaining unit.
ReplyDeleteThank you sir, share the article
Good
ReplyDeletesuper
ReplyDeleteThank you