मुंशी प्रेमचंद्र के बेहतरीन कहानी जिसे आप जरूर पड़े......

हैलो, दोस्तों, आपको मुंशी प्रेमचंद्र के लिखित कहानी जरूर पड़े
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1.EIDGHA( ईदघा) 

About story

रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आ गई। कितना

ख़ूबसूरत और सुहाना एहसास था। पेड़ों पर अजीब सी

हरियाली थी, खेतों में रौनक, आसमान पर दिल लुभाने

वाली लालिमा छायी थी। आज का सूरज तो देखो,

कितना प्यारा, कितना ठंडा है, जैसे दुनिया को ईद की

मुबारक दे रहा हो। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह

जाने की तैयारियोँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन

नहीं है, तो वो पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा

रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, तो वो उनमें तेल

डालने के लिए तेली के घर पर भागा जा रहा है। सब

जल्दी-जल्दी बैलों को चारा-पानी दे रहे हैं। ईदगाह से

लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल

रास्ता, फिर कई आदमियों से मिलना-जुलना, दोपहर के

पहले लौटना नामुमकिन है।

इस कहानी के summary को आप फ्री में सुन सकते है GIGL पर।

 

2. NAMAK KA DAROGA(नमक का दारोगा) 

About story:

जब नमक का नया डिपार्टमेंट बना और भगवान्‌ को

चढ़ाए जाने वाले सामान के इस्तेमाल पर रोक लगा

दी गई तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे।

कई तरह के छल-प्रपंच की शुरुआत हुई, कोई घूस

से काम निकाल रहा था, कोई चालाकी से। अफसरों

के पौ-बारह पच्चीस हो गए थे। गाँव की ज़मीन और

लगान का हिसाब किताब रखने का सम्मानित काम

छोड-छोडकर लोग इस डिपार्टमेंट में शामिल होना चाहते

थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी

ललचाता था। दरोगा यानी इंस्पेक्टर की पोस्ट.

इस कहानी के summary को आप  सुन सकते है GIGL पर।

 

3.POOS KI RAT (पुस की रात) 

About story:

हल्कू ने आकर अपनी पत्नी से कहा- “सहना आया है,

लाओ, जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूं, किसी तरह पिंड तो

छूटे."मुन्नी झाड़ू लगा रही थी, पीछे घूमकर बोली- “थोड़े ही तो

रुपये हैं, दे दोगे तो कम्बल कहां से आएगा? माघ-पूस

की रात खेत में कैसे कटेगी? उससे कह दो, फसल होने

पर दे देंगे. अभी नहीं.”हल्कू सोच में पड़ गया, वैसे ही खड़ा रहा. पूस का महीना

सिर पर आ गया था, कम्बल के बिना खेत में रात को वो

कैसे जा पाएगा. मगर सहना मानेगा नहीं, बातें सुनाएगा,

गालियां देगा. ठण्ड में मरेंगे तो देखा जाएगा लेकिन अभी

तो बला सिर से टल जाएगी. यह सोचता हुआ वह अपना

भारी- भरकम शरीर लिए (जो उसके नाम को झूठ

साबित करता था) पत्नी के पास आ गया और खुशामद

करके बोला- “ला दे दे, पिंड तो छूटे. कम्बल के लिए

कोई दूसरा उपाय सोचूंगा."”

इस कहानी के summary को आप सुन सकते है GIGL पर।

4.BOODI Kaaki(बूड़ी काकी) 

About story:

कहते हैं कि बुढ़ापा एक बार फ़िर से बचपन का दौर

लेकर आता है। बूढ़ी काकी के साथ भी ऐसा ही कुछ था,

वो अपने जीभ के स्वाद से बंध गई थीं, उन्हें और किसी

बात की परवाह ही नहीं थी. इसके साथ-साथ रोने के

अलावा उनकी ओर से कोई दूसरा सहारा भी नहीं था।

उनके पाँचों सेंस organ, आँखें, हाथ और पैर जवाब

दे चुके थे। वो ज़मीन पर पड़ी रहतीं और अगर घर वाले

उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ कोई काम करते या खाना

परोसने में थोड़ी देर हो जाती या बाज़ार से मंगवाया

हुआ कोई सामान नहीं मिलता तो वो रोने लगती।

उनका रोना-सिसकना आम रोना धोना नहीं था, वो गला

फाड़-फाड़कर रोती थीं।......

इस कहानी के summary को आप फ्री में सुन सकते है GIGL पर।

5.DOODH Ka DAAM(दूध का दाम) 

About story:

         अब बड़े-बड़े शहरों में दाइ, नर्स और लेडी डाक्टर, सभी

पैदा हो गयी हैं; लेकिन देहातों में बच्चों की डिलीवरी

करवाने के लिए भंगिनें ही हुआ करती थीं और आने

वाले समय में इसमें कोई बदलाव होने की आशा नहीं

थी। बाबू महेशनाथ अपने गाँव के जमींदार थे, पढ़े-लिखे

थे और डिलीवरी की व्यवस्था में सुधार की ज़रुरत को

मानते थे, लेकिन इसमें जो बाधाएँ थीं, उन्हें कैसे जीता

जाए? कोई नर्स देहात में जाने के लिए राजी न हुई और

बहुत कहने-सुनने से राजी भी हुई, तो इतनी लम्बी-चौड़ी

फीस माँगी कि बाबू साहब को सिर झुकाकर चले आने

के सिवा और कुछ न सूझा।

इस कहानी के summary को आप फ्री में सुन सकते है GIGL पर।

 

6.BALIDAN (बलिदान)

About story:

       इंसान के आर्थिक हालात का सबसे ज्यादा असर उसके

नाम पर पड़ता है। मौजे बेला के मँगरू ठाकुर जब से

कान्सटेबल हो गए हैं, इनका नाम मंगलसिंह हो गया है।

अब उन्हें कोई मंगरू कहने का हिम्मत नहीं कर सकता।

कल्लू अहीर ने जब से हलके के थानेदार साहब से दोस्ती

कर ली है और गाँव का मुखिया हो गया है, उसका नाम

कालिकादीन हो गया है। अब उसे कल्लू कहें तो गुस्सा

करता है। इसी तरह हरखचन्द्र कुरमी अब हरखू हो गया

है। आज से बीस साल पहले उसके यहाँ शक्कर बनती

थी, कई हल की खेती होती थी और कारोबार खूब फैला हुआ था।

   लेकिन विदेशी शक्कर की आमदनी ने उसे बर्बाद कर

दिया। धीर-धीरे कारखाना टूट गया, जमीन टूट गई,

खरीददार टूट गए और वह भी टूट गया। सत्तर साल का

बूढ़ा, जो तकियेदार बिस्तर पर बैठा हुआ नारियल पिया

करता, अब सिर पर टोकरी लिये खाद फेंकने जाता है।

लेकिन उसके चहरे पर अब भी एक तरह की गंभीरता,

बातचीत में अब भी एक तरह की अकड़, चाल-ढाल

 

से अब भी एक तरह का स्वाभिमान भरा हुआ है। उस

पर समय की गति का असर नहीं पड़ा। रस्सी जल गई,

पर बल नहीं टूटा। अच्छे दिन इंसान के चाल-चलन पर

हमेशा के लिए अपना निशान छोड़ जाते हैं। हरखू के

पास अब सिर्फ पाँच बीघा जमीन है और दो बैल हैं। एक

ही हल की खेती होती है।

लेकिन पंचायतों में, आपस की कलह में, उसकी सलाह

अब भी सम्मान की नजरों से देखी जाती है। वह जो बात

कहता है, दो टूक कहता है और गाँव के अनपढ़ उनके

सामने मुँह नहीं खोल सकते।

हरखू ने अपने जीवन में कभी दवा नहीं खायी थी। वह

बीमार जरूर पड़ता, कुआँर मास में मलेरिया से कभी

न बचता लेकिन दस-पाँच दिन में वह बिना दवा खाए

ही ठीक हो जाता था। इस साल कार्तिक में बीमार पड़ा

और यह समझकर कि अच्छा तो ही जाऊँगा, उसने कुछ

परवाह न की। लेकिन अब का बुखार मौत का परवाना

लेकर चला था। एक हफ्ता बीता, दूसरा हफ्ता बीता,

पूरा महीना बीत गया, पर हरखू बिस्तर से न उठा।

अब उसे दवा की जरूरत महसूस हुई । उसका लड़का

गिरधारी कभी नीम का काढ़ा पिलाता, कभी गिलोय

का रस, कभी गदापूरना की जड़। पर इन दवाइयों से

कोई फायदा न होता। हरखू को विश्वास हो गया कि अब

संसार से चलने के दिन आ गए।

एक दिन मंगलसिंह उसे देखने गए। बेचारा टूटी खाट पर

पड़ा राम नाम जप रहा था। मंगलसिंह ने कहा- "बाबा,

बिना दवा खाए अच्छे न होंगे; मलेरिया की दवाई क्यों

नहीं खाते ?" हरखू ने उदासीन भाव से कहा- "तो लेते

आना।"

दूसरे दिन कालिकादीन ने आकर कहा- "बाबा, दो-चार

दिन कोई दवा खा लो। अब तुम्हारी जवानी का शरीर

थोड़े है कि बिना दवा खाए के अच्छे हो जाओगे”।

 

हरखू ने धीरे से कहा- "तो लेते आना।" लेकिन रोगी को

देख आना एक बात है, दवा लाकर देना दूसरी बात है।

पहली बात शिष्टाचार से होती है, दूसरी सच्ची सहानुभूति

से। न मंगलसिंह ने खबर ली, न कालिकादीन ने, न

किसी तीसरे ने। हरखू बरामदे में खाट पर पड़ा रहता।

मंगल सिंह कभी नजर आ जाते तो कहता- "मैया, वह

दवा नहीं लाए ?"

मंगलसिंह बचकर निकल जाते। कालिकादीन दिखाई

देते, तो उनसे भी यही सवाल करता। लेकिन वह भी

नजर बचा जाते। या तो उसे सूझता ही नहीं था कि दवा

पैसों के बिना नहीं आती, या वह पैसों को भी जान से

कीमती समझता था, या जीवन से निराश हो गया था।

उसने कभी दवा के दाम की बात नहीं की। दवा न आयी।

उसकी हालत दिनों दिन बिगड़ती गई। यहाँ तक कि पाँच

महीने तकलीफ सहने के बाद वह ठीक होली के दिन

मर गया। गिरधारी ने उसकी लाश बड़ी धूमधाम के साथ

निकाला ! क्रिया कर्म बड़े हौसले से किया। गाँव के कई

ब्राह्मणों को बुलाया।

बेला में होली न मनायी गई, न अबीर न गुलाल उड़ी, न

बाजा बजे, न भांग की धारा बहीं। कुछ लोग मन में हरखू

को कोसते जरूर थे कि इस बुड्ढ़े को आज ही मरना

था; दो-चार दिन बाद मर जाता.

लेकिन इतना बेशर्म कोई न था कि दुःख में खुशियाँ

मनाता। वह शरीर नहीं था, जहाँ कोई किसी के काम

में शामिल नहीं होता, जहाँ पड़ोसी को रोने-पीटने की

आवाज हमारे कानों तक नहीं पहुँचती |

 

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8.BADE BHAI SAHAB

9.BODH

10.CHAMATKAR


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