हिटलर का नाम सुनते है एक ऐसे आदमी की याद आतीमॉडर् है जिसकी सनक और जाति प्रेम ने ना जाने कितने मासूमो की जान ली, कितनो को अपने घर से बेघर होकर भागना पड़ा. वो एक ऐसा तानाशाह था जिसने दुनिया में सिर्फ नफरत का जहर फैलाया, जिसने इंसानों को उनकी जाति और कल्चर के बेस पर बाँटने की कोशिश की. जेविश कम्यूनिटी का सबसे बड़ा दुश्मन जिसके वहशीपन का सबूत है नाज़ी कॉंस्ट्रेशन कैम्पस जहाँ हैवानियत की सारी हदे पार की गयी थी. मॉडर्न टाइम के ऐसे खूंखार लीडर की लाइफ स्टोरी पढठकर हमे यही सीखने को मिलता है दुनिया नफरत से नहीं बल्कि इंसानियत और प्यार से चलती है.
ये बुक किस किसको पढनी चाहिए?
हर वो इन्सान जो ग्रेट डिक्टेटर अडोल्फ़ हिटलर की लाइफ के बारे में जानना चाहता है उसे ये बुक पढके देखनी चाहिए. एडोल्फ हिटलर दुनिया का महान डिक्टेटर था. इसमें कोई शक नहीं कि वो एक इन्फ्लुएंशल पर्सनेलिटी का मालिक था जिसने जेर्मनी के लोगो को आर्यन रेस का बताकर उन्हें अपने सुपीरियर होने का एहसास दिलाया था. लेकिन हिटलर की सनक और जिद ने लाखो लोगो का कत्लेआम ककिया होलोकास्ट बनाये और टॉर्चर करने के लिए उन्हें नाज़ी कैम्प में डाल दिया था.
इस बुक के ऑथर कौन है?
इस बुक के ऑथर खुद हिटलर है. वो एक जर्मन पोलिटिशियन और नाज़ी
लीडर था. वो 20 अप्रैल1889 ऑस्टिया में पैदा हुआ था जो तब ऑस्ट्रिया हंगरी का पार्ट
था. उसकी ऑटो बायोग्राफी मियन कम्फ 1925 में पब्लिश हुई थी. इस बुक के आलावा हिटलर
की मौत के बाद उसकी कई सारी स्पीचेस भी छपी. वो एक बड़ा ही इन्फ्लुयें्ल स्पीकर था
जो लाखो लोगो को इंस्पायर करके अपनी बात मानने पर मजबूर कर देता था. 30 अप्रैल, 1945
में नाजियो की हार के बाद उसने खुद को अपनी ही रिवोल्वर से गोली मारकर आत्महत्या कर
ली थी.
Unit 1
इंट्रोडक्शन (Intoduction)
अडोल्फ़ हिटलर कौन है? आपने शायद हिटलर के बारे
में बुक्स या इंटरनेट पर पढ़ा हो. गैस चैम्बर्स, कॉन्सट्रेशन
कैम्पस और होलोकौस्ट की स्टोरी तो हम सब जानते है.
माइन कैप्फ़ में आप जानेंगे कि हिटलर कौन था, कैसा
था और क्या उसकी सोच थी. ये बुक आपको बताएगी
कि हिटलर का बचपन कैसे गुज़रा, उसके सपने क्या थे
और उसका पैसन क्या था.
आप जानेंगे वो कौन से थौट्स और आईडियाज थे जिन्होंने हिटलर को
वर्ल्ड का मोस्ट पॉवरफुल इन्सान बनाया. कैसे उसने हज़ारो सोल्जेरस को इन्फ्लुएंश करके
दुनिया में दहशत फैला दी थी. कुछ लोग मानते है कि वो एक पागल और संनकी इन्सान था. तो
कुछ बोलते थे कि वो एक जीनियस और करिश्मेटिक इन्सान था. लेकिन इस बुक को पढकर आपको
खुद समझ आ जायेगा कि वो असल में कैसा इन्सान था क्योंकि ये बथी हिटलर ने खुद लिखी है.
ये एक ऐसे इन्सान की स्टोरी है जिसने दुनिया के लाखो लोगो की लाइफ चेंज कर दी थी.
इन द हाउस ऑफ़ माई पेरेंट्स (मेरे पेरेंट्स के घर में) मै बरनौ (छ808080) टाउन में पैदा हुआ था जो जर्मनी और ऑस्ट्रिया
के बॉर्डर पर है. इसे मै प्योर लक समझता हूँ. मुझे
लगता है कि ये मेरी जेनरेशन
की ड्यूटी है कि हम इन दोनो जर्मन स्टेट्स को किसी भी हाल में
एक साथ मिला दे. ऑस्ट्रिया को जेर्मनी में आना ही होगा क्योंकि हमारा खून एक है. और
जेर्मनी को अपने बेटो को एक साथ रखना ही होगा. मेरे पेरेंट्स वैसे तो बवारैयन (84४40)
है मगर असल में वो ऑस्ट्रियन है. मेरे फादर एक डिवोटेड सिविल सर्वेट है, वो एक कस्टम ऑफिशियल है. और मेरी मदर एक हाउसवाइफ.
मुझे ब्रानाऊ की ज्यादा बाते याद नहीं है क्योंकि मेरे पैदा होने के कुछ टाइम बाद ही मेरे फादर पस्सु(९4554 )
ट्रांसफर हो गया था जोकि जेर्मनी में आता था. मेरे ग्रेंड फादर गरीब फार्मर थे, यही
वजह थी कि
मेरे फादर शुरू से ही खुद पे डिपेंडेट रहे. वो काफी हार्ड वर्किंग
भी थे और अपने बुढापे तक हमेशा काम करते रहे. 15 की उम्र में वो घर से भागकर विएना
चले गए थे. जहाँ उन्होंने पैसे कमाने के कई तरीके सीखे. फिर वो शहर चले आए. 17 साल
की उम्र में उन्होंने सिविल सर्विस एक्जाम् पास किया. उनका गवर्नमेंट जॉब करने का
सपना पूरा हुआ.
बचपन में उन्होंने कसम खाई थी कि वो तब तक अपने होमटाउन नहीं
लौटेंगे जब तक कि वो कुछ बन ना जाए. और उन्होंने
ऐसा ही किया. 56 की उम्र में जब वो रिटायर हुए तो उन्हें घर पे खाली बैठना पंसद नहीं
आता था. तो उन्होंने एक फ़ार्म खरीदा और उसकी देखभाल करने लगे. इसी फ़ार्म में मेरा
बचपन गुज़रा था. मै बड़ा शरारती था, सारा दिन यहाँ से वहां भागता रहता था.मेरी मां
सोचती थी कि मै बाहर कम और घर पे ज्यादा रहूँ. मेरी पब्लिक स्पीकिंग स्किल शुरू से
अच्छी थी. मेरी अपने क्लासमेट्स से आर्ग्यूमेंट होती तो मै ही जीतता था. मेरे फादर
की अपनी एक लाइब्रेरी थी जहाँ पर मैंने 1870-1871 की फ्रांको जर्मन वार पर कई सारी
बुक्स पढ़ी. ये बुक्स मेरी फेवरेट थी. इनके अंदर की डिटेल्ड इलुस्ट्रेशन पढना मुझे
बड़ा पसंद था और तभी से मुझे मिल्ट्री और वॉर से रिलेटेड हर चीज़ अच्छी लगने लगी
थी. मेरे फादर चाहते थे कि मै उनके जैसे एक सिविल सर्वेट बनू,
मुझे बड़े होकर कौन से हाई स्कूल जाना है इस बारे मेंह मारी खूब बहस होती थी. लेकिन वो अपने डिसीजन पर अड़े थे. उन्हें लगता था मै वही करूँ जो उन्होंने अपनी लाइफ में किया. जितना वो मुझे सिविल सर्विस जॉब के लिए पुश करते उतना ही मै उस डायरेक्शन से दूर भागता. एक दिन मैंने उन्हें बोल दिया कि मुझे आर्टिस्ट बनना है, मै पेंटर बनूँगा. सुझे ड्राइंग का शौक था इसलिए मै इस फील्ड में अपनी स्किल्स इम्प्रूव करना चाहता था. तो मैंने अपने फादर को बोला कि मै आर्ट में करियर बनाऊंगा, उन्हें सुनकर बहुत गुस्सा आया. ”जब तक मै जिंदा हूँ तुम्हे आर्टिस्ट कभी नहीं बनने दूंगा” उन्होंने कहा.
मुझे पता था मेरे फादर बड़े जिद्दी है मगर मै भी कौन सा कम था. उन्होंने मेरा एडमिशन रियलस्कुले(२६व5८006) में
करा दिया. जो सब्जेक्ट्स मुझे पंसद थे उनमे मेरे अच्छे ग्रेड्स आते और जो पसंद नहीं
थे उसमे पूअर मार्क्स मिलते. यानी मेरे रिपोर्ट कार्ड में कहीं पर एक्स्लिलेंट और कहीं
पर इनएडीकेट लिखा होता. मगर हाँ, हिस्ट्री और जियोग्राफी दोनों मेरे फेवरेट सब्जेक्ट्स
है और इनमे मेरे पूरी क्लास में सबसे ज्यादा मार्क्स आते है. फिर मेरी लाइफ में वो
मोड़ आया जिसने मुझे केयरफ्री बॉय से एक माइंडफुल यंग मेन बना दिया था, ये तब हुआ जब
मेरे फादर की डेथ हुई, तब मै 13 साल का था,दो साल बाद मेरे मदर भी चल बसी थी. मै आर्ट
एकेडमी में जाकर एक आर्टिस्ट बनने के सपने देख रहा था लेकिन किस्मत को शायद कुछ और
ही मंजूर था. मै अब अनाथ था, मुझे अपने ही दम पे जीना था. तो मै भी विएना चला गया जैसे
मेरे फादर 50 साल पहले गए थे. मै भी उनकी तरह खुद को प्रूव करना चाहता था. लेकिन सिविल
सर्वेट तो मै बिलकुल भी नहीं बनना चाहता था.
Unit 2
इयर्स ऑफ़ स्टडी एंड सफरिंग इन विएना ( years of stady and suffering
in vienna)
स्कूल ऑफ़ पेंटिंग एकेडमी में मैंने एंट्रेंस एक्जाम दिया.मुझे लगा मेरी पेंटिंगस सबसे अच्छी है मगर मै बुरी तरह रिजेक्ट हुआ. मुझ पर जैसे बिजली गिर पड़ी. मेरे भूखे मरने की नौबत आ गयी थी. मैं स्माल पेंटर और लेबर का काम करने लगा जिससे मुझे दो वक्त का खाना मिल जाता था. अपने फ्री टाइम में मै बुक्स पढता था. कोई बुक पसंद आती तो खाने के पैसे बचा कर मै किताब लेता था. जो भी हो, किताबे मेरा पैशन थी. मैंने किताबों से बहुत कुछ सीखा. सिटी लाइफ में दो चीज़े ऐसी थी जिसने मेरी आँखे खोली और वो थे जेविश और मार्क्सिस्ट्स लोग. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये लोग जर्मन पब्लिक के बीच क्या कर रहे है. जितना मै इन लोगो को देखता उतना ही मुझे उनसे नफरत होती थी.
जेविश लोग खुद को “चूजन वन” बोलते थे लेकिन ये लोग अंदर बाहर दोनों तरफ से मैले थे. जेविश लोगो को मैं देखते ही पहचान सकता हूँ. विएना की सडको पर जेविश भरे पड़े है. ये लोग गंदे कपडे पहनते है और इनसे अजीब सी स्मेल आती है. इन्हें देखते ही मुझे उल्टी आने लगती है. मै जेविश कल्चर के बारे में जानता हूँ, इन लोगो के आर्ट, लिटरेचर और थिएटर के बारे में जानता हूँ और मुझे ये समझ आया कि जेविश कल्चर एक बीमारी है जो जर्मन लोगो को इन्फेक्ट कर सकता है. और ये बिमारी मिडल एज के ब्लैक प्लेग से कम नहीं है. ये लोग इंसानियत के नाम पे धब्बा है. इनका लिटरेचर कचरा है. इनका आर्ट बहुत ही घटिया है. और इनके थिएटर में बेवकूफी झलकती है और
फिर भी ये लोग दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे है. मै एक बिल्डिंग वर्कर का काम कर रहा था. वहां पर ट्रेड यूनियन के लोगो से मेरी अक्सर बहस हो जाती थी. ये लोग खुद को एम्प्लोईज का चैंपियन बोलते थे लेकिन ये लोग सिर्फ अपनी जेब भरते थे, और तभी मुझे पता चला कि ये यूनियन लीडर्स, ये सोशल डेमोक्रेट्स सारे जेविश है. मै कोई भी सोशल डेमोक्राफ्ट पढ़ सकता हूँ, इनमे ऑथर और पब्लिशर के सरनेम कुछ इस तरह होते है, एलेनबोगेन, डेविड, एडलर, ऑस्टरलिज़ वगैरह. ये लोग मर्किसिस्म की बाते फैलाते है.
मै जानता हूँ कि ये मार्किस्ट लोग और ये सडको पे दंगा-फसाद करने वाले सब के सब जेविश है.गुस्से और नफरत से मेरे तनबदन में आग लग गई. खुद
को “चोजन पीपल” बोलने वाले इन लोगो की हिम्मत कैसे हुई कि कार्ल मार्क्स की बाते करके हमारे शहर में नफरत फैलाए? इनकी इतनी हिम्मत कि बाकियों को भी गवर्नमेंट के खिलाफ भड़का के काम करने से मना करे? मै तो इस बात पे यकीन करता हूँ कि हम जर्मन लोग स्पेशल है और पॉवरफुल है, मै पर्सनिलिटी की वैल्यू में यकीन रखता हूँ. कुछ लोग राज करने के लिए पैदा हुए है और बाकि लोग उन्हें फोलो करने और उनकी बात मानने के लिए. और दुनिया को सही ढंग से चलाने का यही तरीका है लेकिन ये मार्किस्ट इस आर्डर को डिस्ट्रॉय करने की कोशिश कर रहे है जिससे काफी नुकसान होने वाला है.जैस इससे काफी गड़बड़ हो सकती है. मार्किस्ट हम जैसे प्रिविलेज्ड लोगो का हक छीन कर कॉमन लोगो के हाथ में देना चाहते है. ये लोग हमारे कल्चर, हमारी जाति और नेशनलिटी मिलावट करना चाहते है. मर्क्सिस्म ही वो तरीका है जिससे जेविश लोग दुनिया में राज करना चाहते है. ये” चोजन लोग” खुद को सुपीरियर प्रूव करना चाहते है. मै खुद को अपने कल्चर के लोगो को जेविश लोगो से बचाना चाहता हूँ और इसलिए मुझे लगता है कि मै एक तरह से गॉड की इच्छा को पूरी कर रहा हूँ.
म्यूनिख (Munich)
मै 1912 में विएना से म्यूनिख चला आया. वॉर से पहले वाले दिन मेरी लाइफ के सबसे खुशनुमा दिन थे.म्यूनिख काफी डिफरेंट सिटी है. ये शहर जर्मन आर्ट से भरा पड़ा है, इस शहर से मुझे प्यार हो गया है. म्यूनिख से अच्छी जगह मैंने आज तक नहीं देखी. इस सिटी का डायलेक्ट मेरे दिल के बड़े करीब है. यहाँ मेरे जैसे बहुत से लोग बवेरिया से आए है. इन लोगो के साथ मेरा उठना बैठना है. इनसे मिलकर अपने पेरेंट्स और बचपन की यादे ताज़ा हो जाती है. म्यूनिख सिर्फ एक शहर नहीं है ये पॉवर और आर्ट का संगम है.
Dear reader Thank you read this Article.
और बाकी शेष भाग अगले part में मिले गा
ये artical आप को कैसा लगा जरूर कॉमेंट कर बताए और like करे.
3 Comments
bast story, tanasha hitler
ReplyDeleteSuper,👏👏👍👍
ReplyDeleteVery good👍👍👍
ReplyDeleteThank you